Rbse 10th Science Solution In Hindi
मानव तंत्र ( Human System)
कोशिका – मानव शरीर की मूलभूत संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को कोशिका कहते हैं।
ऊत्तक – समान उत्पति की कोशिकाओं का समूह जिनका कार्य समान हो, ऊत्तक कहलाता है।
उदाहरण – पेशी,संयोजी ऊत्तक, अस्थि ऊतक
अंग – दो या अधिक ऊत्तक मिलकर साथ काम करे तो अंग कहलाते हैं।
तंत्र – कई अंग मिलकर किसी कार्य को पूरा करे तो इसे तंत्र कहते है।
उदहारण – पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र।
पाचन तंत्र – भोजन में उपस्थित जटिल पदार्थों को अवशोषण योग्य सरल पदार्थों में बदलने की प्रक्रिया को पाचन कहते है।
– शरीर के कई अंग व ग्रन्थियां मिलकर पाचन क्रिया को पूरा करती है, पाचन तंत्र कहलाती है।
पाचन तंत्र के भाग |
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1. अंग
मुख मुखगुहा ग्रसनी / ग्रसिका ग्रासनली आमाशय छोटी आंत I. गृहणी II. अग्रक्षुदान्त्र III. क्षुदान्त्र बड़ी आंत I. अंधान्त्र या अंधनाल II. वृहदान्त्र III. मलाशय मलद्वार |
2. ग्रंथियां
लार ग्रन्थियां यकृत ग्रन्थि अग्नाशय ग्रन्थि |
आहारनाल – शरीर में पाई जाने वाली लम्बी नली जो मुख से प्रारम्भ होकर मलद्वार पर समाप्त होती है, आहारनाल कहलाती है।
आहारनाल की कुल लम्बाई 8 से 10 मीटर होती है।
कार्य –
- भोजन को पचाना
- पचित भोजन का अवशोषण करना
- भोजन को मुख से मलद्वार तक ले जाना
पूरी आहारनाल में संवरणी पेशियाँ पायी जाती है जो क्रमानुकुंचनी गतियों द्वारा भोजन को हमेशा आगे की ओर धकेलती है।
आहारनाल की संरचना –
1. मुख – एक अनुप्रस्थ दरार जो ऊपरी एवं निचले होंठ द्वारा घिरी रहती है।
मुख में कोई पाचन क्रिया नही होती है।
भोजन को आहारनाल में प्रविष्ट करवाना ही मुख का मुख्य कार्य है।
मुख मुखगुहा में खुलता है।
2. मुखगुहा –
आकृति – कटोरेनुमा
छत – तालु
दीवारें – गाल
फर्श – जीभ
उपस्थित अंग – तालु,जीभ, दांत
तालु – तालु मुखगुहा तथा नासागुहा को पृथक् करता है।
- तालु दो भागों से निर्मित होता है
- अग्रभाग – कठोर II. पश्च भाग – मुलायम
- कठोर भाग गढ्ढेनुमा जो भोजन को चबाते समय भोजन के कणों को मुखगुहा के बाहर जाने से रोकता है।
– कोमल भाग पर उभार होता है जिसे Uvla ( युव्ला) कहते है। यह उभार भोजन को निगलते समय नासा मार्ग को बंद कर देता है ताकि भोजन के कण नाक में नही जाए ।
जीभ – रंग – गुलाबी
- जीभ मांसपेशियों द्वारा निर्मित लचीला अंग होता है जो सम्पूर्ण मुखगुहा में गति कर सकती है
- जीभ की सम्पूर्ण सतह पर असंख्य स्वाद कलिकाएँ होती है जिनसे स्वाद का ज्ञान होता है
कार्य –
- भोजन में लार मिलाने में सहायक
- बोलने में सहायक
- स्वाद का ज्ञान कराने में सहायक
नोट :- जीभ मुखगुहा से फ्रेनुलम लिंगुअल या जिह्वा फ्रेनुलम द्वारा जुडी होती है ।
दांत –
- व्यस्क में दांतों की संख्या – 32
- किशोर में दांतों की संख्या – 28
- मनुष्य विषमदंती,गर्तदंती, द्विबारदंती होता है ।
- मनुष्य में दांत जबड़े की हड्डियों के खांचे / गड्ढे में स्थित होते है तथा मसूड़े इनको चारों ओर से घेरकर मजबूत बनते हैं
- द्विबारदंती – मनुष्य में कुछ दांत दो बार आते हैं। in दांतों को अस्थाई (दूध के दांत ) कहते है । जो संख्या में 20 होते है ।
- जो चार प्रकार के होते है ।
क्र. सं. | दांत का नाम | संख्या | आने की उम्र | कार्य |
1. | कृंतक (Incisors) | 4 + 4 = 8 | छह माह की आयु | भोजन को काटना |
2. | रदनक (Caniners) | 2 + 2 = 4 | 16-20 माह | भोजन को चीरना |
3. | अग्रचवर्णक (Premolars) | 4 + 4 = 8 | 10 से 11 वर्ष | भोजन को चबाना |
3. | स्थायी दांत | 2 + 2 = 4 | 22 – 25 वर्ष |
– मुखगुहा ग्रसनी में खुलती है ।
3. ग्रसनी –
आकार – कुप्पीनुमा
स्थिति – मुखगुहा के ठीक नीचे ग्रीवा के ठीक उपरी हिस्से में स्थित होता है ।
- ग्रसनी में नासागुहा, मुखगुहा, श्वासनाल, तथा ग्रसनाल चारों मार्ग खुलती है ।
- ग्रसनी नासागुहा से आने वाली हवा को श्वासनाल में तथा मुखगुहा से आने वाले भोजन में ग्रासनाल में भेजना सुनिश्चित करती है
- ग्रसनी निम्न तीन भागों से बनी होती है ।
- नासगुहा, मुखग्रसनी, कंठग्रसनी में पट्टीनुमा झिल्लीदार संरचना एपिग्लोटिस होता है जो भोजन निगलते समय श्वासनाल को बंद कर देती है ताकि भोजन के कण श्वासनाल में ना जाए ।
4 . ग्रासनाल –
- लम्बाई – 25 cm
- स्थिति – ग्रसनी के अंतिम भाग से लेकर आमाशय तक (ग्रीवा, वक्षगुहा, डायाफ्राम से होते हुए ) ।
- नोट – इसमें उपस्थित मांसपेशियां ऊपर से नीचे तरफ लहरदार गति करती है इन गतियों को क्रमानुकुंचनी गति कहते है ।
- क्रमानुकुंचनी गतियां पूरी आहारनाल में होती है जो भोजन को आगे की ओर धकेलती है ।
- ग्रासनाल में उपस्थित श्लेष्मा ग्रंथियां भोजन को लसलसा बनाती है ।
5. आमाशय –
- आकृति – अंग्रेजी वर्णमाला के J अक्षर के समान ।
- आहारनाल का सबसे मोटा भाग ।
- स्थिति – उदरगुहा के डायाफ्राम के ठीक नीचे बायीं तरफ ।
- इसका एक सिरा ग्रासनाल से तथा दूसरा सिरा छोटी आंत से गृहणी से जुड़ा होता है ।
- आमाशय के तीन भाग होते हैं ।
i. कार्डियक या जठरागम भाग
ii. बॉडी
iii. पाइलोरस भाग
इसका उपरी हिस्सा फण्डस कहलाता है ।
आमाशय में दो अवरोधिनी ( वाल्व ) पाए जाते है ।
- कार्डियक अवरोधिनी – ग्रासनाल व् आमाशय के कार्डियक के मध्य
- पाइलोरिक अवरोधिनी – आमाशय के पाइलोरिक भाग व गृहणी के मध्य
दोनों अवरोधिनी भोजन को आमाशय से बाहर जाने का नियंत्रण रखती है ।
6. छोटी आंत –
- लम्बाई – लगभग 7 मीटर
- छोटी अंट का व्यास बड़ी आंत की तुलना में कम होता है इसी कर्ण इसे छोटी आंत कहा जाता है
- छोटी आंत आमाशय के पाइलोरिक भाग से शुरू होकर बड़ी आंत के अंधनाल भाग पर पूरी होती है
- भोजन का अधिकांश पाचन तथा पचित भोजन का अधिकांश अवशोषण छोटी आंत में किया जाता है
- छोटी आंत को तीन भागों में बांटा जा सकता है –
i. गृहणी – आकार – अंग्रेजी वर्णमाला के “U” के जैसा
- लम्बाई – 0.6 मीटर
- गृहणी में यकृत से स्त्रावित पित्तरस तथा अग्नाशय से स्त्रावित अग्नाशय रस एक ही नलिका (यकृत, अग्नाशयी नलिका ) द्वारा छोड़े जाते है
- इन दोनों पाचक रसों की सहायता से गृहणी में भोजन का पाचन किया जाता है
- गृहणी में अवशोषण क्रिया नही होती है
ii. अग्रक्षुदान्त्र –
- लम्बाई – लगभग 3.6 मीटर
- अग्रक्षुदान्त्र में अन्त्रिय रस नामक पाचक रस स्त्रावित किया जाता है जो गृहणी के अर्द्धपचित भोजन को पुर्णतः पचा देता है
- अग्रक्षुदान्त्र में स्थित आंत्रकोशिका (एंटेरोसाईट), विलाई, तथा माइक्रो विलाई पचित भोजन को अवशोषित करता है
iii. क्षुदान्त्र –
- लम्बाई – लगभग 2.4 मीटर
- छोटी आंत के इस भाग में शेष बचे पचित भोजन का पित्त लवण तथा विटामिनों का अवशोषण किया जाता है
7. बड़ी आंत –
- लम्बाई – लगभग 1.5 मीटर
- यह पाचन तंत्र का अंतिम भाग होता है
- बड़ी आंत में E-Colai (ई – कोलाई ) नामक जीवाणु रहते है जो विटामिन E तथा K का निर्माण करते है
- विटामिन E – प्रजनन क्षमता को बनाए रखना
- विटामिन K – रक्त का थक्का बनाने में सहायता करना
- ये जीवाणु छोटी आंत से निकले अपचित भोजन का किण्वन के पाचन क्रिया में सहायता करते है
- बड़ी आंत अपचित भोजन में श्लेष्मा मिलाती है जिससे निष्कासन आसानी से हो सके
- बड़ी आंत में जल, विटामिन, तथा कुछ औषधियों का अवशोषण किया जाता है
- बड़ी आंत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
i. अंधान्त्र या अंधनाल ( Cecum) – अंधनाल छोटी आंत के क्षुदान्त्र तथा बड़ी आंत के वृहदान्त्र से जुड़ा रहता है
- अंधनाल में क्षुदान्त्र से आए पचित भोजन का अवशोषण किया जाता है तथा अपचित भोजन को वृहदान्त्र में भेजा जाता है
कृमिरूपी परिशेषिका (वर्मीफॉर्म अपेन्डिक्स) –
- लम्बाई – 4 से 5 इंच
- स्थिति – अंधनाल के प्रथम भाग में
- आकृति – कृमि जैसी / अंगुलीनुमा
- यह मनुष्य में अवशेषी अंग होता है
ii. वृहदान्त्र ( Colon) –
- लम्बाई – 1.3 मीटर
- आकृति – उल्टे U अक्षर के सामान
- स्थिति – अन्धनाल व मलाशय के बीच
- वृहदान्त्र को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है
- आरोही वृहदान्त्र
- अनुप्रस्थ वृहदान्त्र
- अवरोही वृहदान्त्र
- सिग्मोराइड वृहदान्त्र
iii . मलाशय –
- लम्बाई – 2.0 cm
- आकृति – थैलेनुमा
- कार्य – अपचित भोजन (मल ) का अस्थायी रूप से संचय
- स्थिति – आहारनाल का अंतिम भाग जो 3cm लम्बी गुदानाल से जुड़ता है तथा गुदानाल मलद्वार द्वारा शारीर के बाहर खुल जाती है
- गुदानाल के ऊपरी तथा निचले हिस्सों पर संवरणी पेशियाँ (स्किन्टर) पायी जाती है जो मल के निष्कासन का नियंत्रण करती है
- आंतरिक पेशियाँ अनैच्छिक तथा बाह्य पेशियाँ ऐच्छिक होती है
पाचन ग्रन्थियाँ – आहारनाल से बाहर स्थित कुछ अंग अपना स्राव आहारनाल में छोड़ते है तथा स्राव पाचन क्रिया में सहायता है इन अंगों को पाचन ग्रन्थियाँ कहते है
जैसे :-
- लार ग्रन्थियां
- यकृत ग्रन्थि
- अग्नाशय ग्रन्थि
लार ग्रन्थि –
- संख्या – 3 जोड़ी अर्थात 6
- स्राव – तरल व श्लेष्मा मिश्रित होता है जिसे लार कहते हैं
लार के कार्य –
- लार का तरल भाग भोजन को गीला करता है तथा श्लेष्मा भाग भोजन को चिकना बनाता है ताकि निगलने में आसानी हो
- लार में उपस्थित टायलिन (एमाइलेज ) एन्जाइम मुखगुहा में स्टार्च का पाचन करता है
- लार का लाइसोजाइम एन्जाइम भोजन तथा मुखगुहा के जीवाणुओं को मरकर हमारी रोगों से रक्षा करता है
- लार मुखगुहा, जीभ, तथा दांतों की सफाई करती है
क्र. सं. | लार ग्रन्थि का नाम | स्थिति | स्राव | स्रावण का स्थान |
1. | कर्णपूर्व लार ग्रन्थि (Parotid Gland) | कान के ठीक आगे गालों में | सिरमी तरल | इन दोनों ग्रंथियों द्वारा निकली |
2. | अधोजंभ लार ग्रन्थि (Sub.mandibular salivary gland) | जबड़े के पास | तरल व श्लेष्मा मिश्रित | अग्रचवर्णक दांतों के पास से मुखगुहा के पास से मुखगुहा में आती है |
3. | अधोजिह्वा लार ग्रन्थि (Sublingual gland) | जीभ के नीचे | श्लेष्मिक स्रावण | जीभ के फ्रेनुलम के दोनों और से |