हिंदी भाषा:-
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भाग – 1 -सर्वप्राचीन संस्कृत की सर्वप्रिय सुता है हिंदी….
विधा :- कविता
विषय:- हिंदी भाषा
सर्वप्राचीन संस्कृत की सर्वप्रिय सुता है हिंदी,
सभी भाषाओं की सर्वश्रेष्ठ भगिनि है हिंदी,
भाषा बहता निर्झरिणी सा अमृत नीर हैं हिंदी,
अति अमूल्य अक्षरनोक्ति की सु रचना है हिंदी,
सुनिष्ठ,सुसंस्कृत,सुसभ्य,सुलभ्य सार है हिन्दी,
सरल है,सहज है,सुंदर है सुरों की साज है हिंदी,
मीठी है ,मनोरम है,हृदय के तार से जुड़ी है हिन्दी,
तेजस्वीनी,ओजस्वनि,ऋषियों मुनियों की हैं हिंदी,
मन के भावों की,माँ के दुलार की प्यारी है हिंदी,
बालक की प्रथम बोली व शिक्षिका सम है हिंदी,
गद्य,पद्य,नाटक,कथा,कहानी जीवनी में है हिन्दी,
मीरा भक्ति, कबीर के दोहे,घनानंद सुजान है हिन्दी,
असीमित,असीम,शाश्वत हृदयस्पर्शी साहित्य है हिन्दी,
सभी को साथ ले चले,सब को हृदय में दे स्थान है हिन्दी,
मेरा मान है,मेरा अभिमान है, मेरा गौरवगान है हिंदी,
विश्वजगत में जानी जाये ऐसी हिंदुस्तान की शान है हिंदी।
by – निशा कमवाल
भाग – 2 – हिंदी नहीं है भाषा ही मात्र
विधा :- कविता
विषय:- हिंदी भाषा
हिंदी नहीं है भाषा ही मात्र
हिंदी से ही है सारे संवाद
हिंदी ना होती तो हम कैसे होते
हिंदी ना होती तो मां कैसे कहते हैं
हिंदी से है हिंदुस्तान हमारा
हिंदी ना होती तो भारत ना होता
हिंदी ना होती तो प्यार ना होता
हिंदी से जन्मा है मंच ये हमारा
हिंदी बिना ये कविता ना होती
कवि का होता न जीवन ये प्यारा
by – अभिनाश सिंह
हिंदी भाषा राष्ट्र की जननी ✍🏻
भाग – 3 – हिंदी भाषा राष्ट्र की जननी
विधा :- कविता
विषय:- हिंदी भाषा
हिंदी भाषा राष्ट्र की जननी
जिसके माथे शोभा की बिंदी
सभी भाषाओं में ये भाषा निराली
जन-जन को लगे प्यारी-प्यारी
शुद्ध स्पष्ट शब्द हैं निराले
जो हिंदी जाने कहीं नहीं चकराने वाले
सभी भाषाओं में भाषा प्यारी
सारे क्षेत्र के लोगों द्वारा बोली जाने वाली
आसानी से जो समझ आ जाये इतनी प्यारी
हिंदी भाषा हमें लगती सबसे न्यारी
क्योंकि ये हैं हिंदी भाषा राष्ट्र की जननी
जिसके माथे शोभा की बिंदी ❤️✍🏻
लेखिका :- पूजा वर्मा✍🏻
भाग – 4 -हिंदी भाषा है जन-जन की प्यारी भाषा हिंदी….
विषय – हिंदी भाषा
विधा – कविता
हिंदी भाषा है जन-जन की प्यारी भाषा हिंदी।
लोगों की सोच हो गयी है अब चिंदी।
समझते है सब तुझे,आसान बिंदी जैसा।
लुप्त हो रही है तू बिल्कुल,संस्कारों जैसा।
ओ! हिंदी जन-जन की प्यारी हिंदी।
समझते है लोग तुझे माथे की बिंदी।
फिर क्यों लुप्त हो रही तू,
अंग्रेज़ी भाषा के बोझ तले।
मातृभाषा कहकर भी लोग तुझे,
नही लगाते है गले।
ओ! हिंदी जन-जन की प्यारी हिंदी।
नारी की सुंदरता की पहचान बिंदी।
मातृभाषा कहलाती तू,
फिर क्यों अंग्रेज़ी बनती है,
तेरे विकास में समस्या।
तू माथे की बिंदी है,
अर्थात इस देश की है पहचान,
फिर भी लोग समझते है,
तुझसे रूबरू होना समस्या।
by – प्रिया कुमारी