साबुन, अपमार्जक एवं पीड़कनाशी:
साबुन (Soap) : उच्च वलीय अम्लों (कार्बन परमाणु की संख्या C12से C18 तक) के सोडियम लवण, साबुन कहलाते है।
- उच्च वसीय अम्ल– (पामिटिक अम्ल, स्टीयरिक अम्ल, ओलेईक अम्ल) जैसे–
एस्टरीकरण
पामिटिक अम्ल +NaOH —————→ (C15H31CONa) + H2O
साबुनीकरण
- साबुन को पारदर्शी बनाने के लिए उसमेग्लिसरीनमिलाया जाता है।
- नहाने के साबुन मेंपोटेशियम हाइड्रोक्साइड (KOH) पाया जाता है।
- कठोर साबुन (Hard Soap): उच्च वसीय अम्ल (संतृप्त) के वे सोडियम लवण जिनमें मुक्त क्षार उपस्थित हो, उन्हें कठोर साबुन कहते है। इन्ही साबुनों कोलॉन्ड्री सोपकी तरह काम मे लेते है।
मृदु साबुन (Soft Soap) : असंतृप्त वसीय अम्लों के पोटेशियम लवण जिसमे मुक्त क्षारक अनुपस्थिति हो। ये जल में अत्यंत घुलनशील होने के कारण झाग देते है अतः इन्हें शेविंग क्रीम, शैम्पू बनाने में काम मे लेते है।
साबुन का औद्योगिक निर्माण
1.तेल – साबुन के निर्माण में मुख्यतया मूंगफली का तेल, नारियल का तेल, अरण्डी का तेल काम में लेते है तथा कठोर बनाने के लिए जन्तु वसा का उपयोग करते है।
2.क्षारक – क्षारक के रुप मे NaOH या KOH का प्रयोग करते है।
3.पूरक– पूरक साबुन के भार में व्रद्धि कर साबुन की जल में विलेयता को कम कर देते है जैसे – स्टार्च, सोपस्टोन (CaSiO3 – कैल्सियम सिलिकेट) व सोडियम सिलीकेट।
4.ठंडी विधि (Cold Process) – पिघली हुई वसा या तेल +क्षार का 10% विलियन हिलाने व मिलाने पर (Stirring + Mixing) प्राप्त मिश्रण को ठंडा करके साबुन के टुकड़े बना लिए जाते है।
गर्म विधि (hot Process )- तेल+ क्षार के विलयन को केतली में भाप के साथ तब तक उबालते है, जब तक तेल का 80% भाग साबुन में नही बदल जाता। अब प्राप्त परिणामी विलयन को सर्पिलाकार नलियों में भाप के साथ गर्म किया जाता है तथा कुछ ब्रायन विलयन (NaCl विलयन) मिलाते है। अतःNa+आयन के सम आयन प्रभाव के कारण साबुन का अवक्षेपण हो जाता है। अब प्राप्त साबुन को जल के साथ उबालकर मुक्त क्षार को दूर कर लिया जाता है।
साबुन की संरचना
इसके दो भाग होते है–
1.धुर्वीय सिरा
2.अधुर्वीय सिरा
1.ध्रुवीय सिरा – यह जल स्नेही व जल में विलेय होता है अतः इसे हैड्रोफोलिक कहते है। ये वसा विरोधी होते है । (COONa+ )
2.अध्रुवीय सिरा – यह जल में अविलेय होता है अतः इसे हाइड्रोफोबिक कहते है। यह अध्रुवीय विलायकों में विलेय, जल विरोधी, वसा स्नेही होता है।
मिसेल (Micelles)
मिसेल गोलाकर समूह होता है,जिनके केंद्र में अध्रुवीय सिरे व परिधि पर स्थित ध्रुवीय किनारे (-C
मैल हटाने की क्रियासाबुन कपड़ो पर लगे ग्रिजी (चिकनाई युक्त पदार्थ) पदार्थो को पासिकरण द्वारा हटाते है। साबुन के अध्रुवीय सिरे ग्रीज (तेल) की बूंदों में घुल जाते है तथा ध्रुवीय भाग कार्बोक्सीलेट आयन (-COO–Na+) जल में घुल जाता है, जिससे ग्रीज व जल के मध्य अन्तः पृष्ठ तनाव कम हो जाता है व ग्रीज का पायसीकरण हो जाता है। पायसीकृत ग्रीज के कण पर समान आवेश होने के कारण आवेश ये एक– दूसरे से अलग–अलग हो जाते है तथा कपड़ो को जल से धोने पर हट जाते है। साबुन के झाग अधिशोषण की क्रिया द्वारा कपड़ो पर लगे धूल के कण को अलग करते है।
ध्यातव्य रहे: कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम व मैग्नीशियम लवणों के साथ साबुन अघुलनशील कैल्सियम स्टियरेट बनाते है, अतः कठोर जल में साबुन झाग नही देते।
ध्यातव्य रहे: सेविंग बनाने वाली क्रीम को जल्दी सूखने से बचाने के लिए इसमे ग्लिसरॉल मिला देते है तथा रोज़िन नामक गोंद मिलाते है जिससे सोडियम रोजिनेट बनता है जो अच्छी तरह झाग देता है।
ध्यातव्य रहे: साबुन की क्रियाशीलता बढाने के लिए इसमे सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) व ट्राई सोडियम फ़ॉस्फ़ेट मिलाते है, जिन्हें विलडर कहते है।
अपमार्जक (Detergent)
ये साबुन रहित होते है।
अपमार्जक के प्रकार–
1.धनायन अपमार्जक (केटायनिक) – इन्हें प्रतीप साबुन कहते है। कृमिनाशक होने के कारण इनका उपयोग हॉस्पिटलों में किया जाता है। उदाहरण– चतुष्क अमोनियम लवण
2.ऋणायनिक अपमार्जक (एनायनिक) – लंबी कॉर्बन श्रंखला (C12 – C18) के प्राथमिक अल्कोहल। उदाहरण – उच्च हाइड्रोकार्बन के सल्फोनेट सोडियम लवण , सोडियम P- डोडेसिल बेंजीन सल्फोनेट। यदि R= CH3हो तो एक कठोर अपमार्जक बनता है जिसे सिन्देल कहते है। यह मृदा का संक्षारण कर सकता है।
अन आयनिक अपमार्जक – सामान्य अपमार्जक जो द्रव अवस्था में होते है, इन्हें वस्त्र, मशीन की धुलाई में काम मे लेते है।
ध्यातव्य रहे : अपमार्जक में कुमेरील व स्टिलविंन मिलाने से चमक बढ़ाने की क्षमता में व्रद्धि होती है व सोडियम ट्राई पॉली फास्फेट मिलाने से सफाई की क्षमता में व्रद्धि होती है।
साबुन | अपमार्जक |
आर्द्रता कम होती है। | आर्द्रता अधिक होती है।
|
इनके निर्माण में कच्चा पदार्थ पेट्रोलियम से प्राप्त होता है। | कच्चा माल वनस्पति तेल से प्राप्त होता है। |
यह जैव निम्नीकरण है। | यह जैव निम्नीकरणीय नही है। |
कठोर जल में झाग नही बनते। | कठोर जल में झाग देते है। |
उदाहरण – सोडियम स्टियरेट, सोडियम ओलियट | उदाहरण – सोडीयम लॉरेल सल्फेट |
ये भी जाने:-
Øसाबुनीकरण प्रक्रिया में तेल का क्षार द्वारा जल अपघटन की क्रिया एस्टरीकरण कहलाती है।
Øसाबुन के मिसेल प्रकाश को प्रकीर्णित कर देते है, इसी वजह से साबुन का घोल बादल जैसा दिखाई देता है।
Øअपमार्जक कठोर जल के Ca++व Mg++के साथ घुलनशील पदार्थ नही बनाते।
पीड़कनाशी (Pesticidies)
वे रासायनिक पदार्थ जो हानिकारक जीव व किट को नियंत्रित एवं मारने में प्रयुक्त होते है, उन्हें पीडकनाशी कहते है।
पीडकनाशी की शाखाएं–
- 1. कीटनाशी(Insecticides) – कीटो को मारने वाले रसायन कीटनाशी कहलाते है, जो निम्न है–
A.उदर विष – पायरेथ्रम,निकोटिन
B.स्पर्श विष – DDT,BHC, एल्ड्रिन, मैलाथिय
- 2. मुष्कनाशी– ऐसे पदार्थ जिनका उपयोग चूहों को मारने में किया जाता है। उदाहरण– जिंक फास्फेट
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