1 अप्रैल: ओडिशा राज्य दिवस (Odisha Statehood Day or Utkala Dibasa)
ओडिशा राज्य प्रतिवर्ष 1 अप्रैल को उत्कल दिवस (Utkala Dibasa) के रूप में मनाता है। इस उत्सव की परंपरा को ओडिशा 84 वर्षों से मनाया जा रहा है। ओडिशा देश का नौवां सबसे बड़ा राज्य है, यह खनिज संसाधनों से समृद्ध है। यह पूरे देश में फैले कई उद्योगों को कच्चे माल जैसे कोयला, लौह अयस्क का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
ओडिशा राज्य के बारे में मुख्य बिंदु
- ओडिशा राज्य की स्थापना – 1 अप्रैल, 1936
- ओडिशा राज्य,1 अप्रैल, 1936 को ब्रिटिश भारत के एक प्रांत के रूप में स्थापित किया गया था तथा इसे उड़ीसा नाम दिया गया था।
- 4 नवंबर, 2011 को इसका अंग्रेजी नाम बदलकर ओडिशा कर दिया गया।
ओडिशा राज्य का इतिहास
- ओडिशा राज्य पर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में महान सम्राट अशोक का शासन था। बाद में इस पर हर्ष जैसे कई अन्य राजाओं ने शासन किया।
- 8वीं शताब्दी के दौरान राज्य कोसल और उत्कल राज्य के रूप में जाना जाता था। वर्तमान में ओडिशा के राज्य दिवस को “उत्कल दिवस” (Utkal Divas) के रूप में मनाया जाता है।
- बाद में 16वीं शताब्दी में, बंगाल की सल्तनत ने ओडिशा पर कब्जा कर लिया था। 18वीं शताब्दी के मध्य में ओडिशा मराठों के शासन में था।
- बाद में कर्नाटक युद्धों के बाद, यह राज्य ब्रिटिश के मद्रास प्रेसीडेंसी के शासन में आया।
ओडिशा के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य : ओडिशा एक नजर में
- 1 अप्रैल, 2021 : ओडिशा स्थापना दिवस या उत्कल दिवस
- ओडिशा राज्य भारत के पूर्वी तट पर स्थित है।
- इससे पहले इसे उड़ीसा के नाम से जाना जाता था
- 1 अप्रैल, 1936 में कटक के कनिका पैलेस में भारत के एक राज्य के रूप में ओडिशा की स्थापना हुई थी
- को में संयुक्त बंगाल-बिहार-उड़ीसा प्रांत से भाषाई आधार पर अलग होकर एक पृथक राज्य के रूप में पहचान प्राप्त हुई थी।
- इसी अवसर की ख़ुशी में समूचे ओडिशा राज्य में प्रत्येक वर्ष 1 अप्रैल को “उत्कल दिवस या ओडिशा दिवस” मनाया जाता है।
- वर्ष 2011 में उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा कर दिया गया था
- ओडिशा ओड़िया भाषा का शब्द है।
- ओडिशा के मुख्यमंत्री : नवीन पटनायक
- ओडिशा के राज्यपाल : गणेशी लाल
- ओडिशा की राजधानी : भुवनेश्वर ( सबसे बड़ा शहर )
- ओडिशा की राजभाषा – ‘ओड़िया
- ओडिशा में जिले – 30
- क्षेत्रफल – 155,707 किमी²
- जनसंख्या – लगभग 4,19,74,218
- जनसंख्या घनत्व – 270 किमी²
- ओडिशा क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का 9वां तथा जनसंख्या के हिसाब से 11वां सबसे बड़ा राज्य है
- ओडिशा में जिला की संख्या : 30
- ओडिशा विधानसभा के सदस्य : 147
- ओडिशा की लोकसभा सीटें : 21
- ओडिशा की राज्यसभा सीटें : 10
- उच्च न्यायालय – उड़ीसा उच्च न्यायालय
- ओडिशा उत्तर में सीमा झारखंड,
- उत्तर पूर्व में सीमा पश्चिम बंगाल,
- दक्षिण में सीमा आंध्र प्रदेश
- और पश्चिम में सीमा – छत्तीसगढ़
- पूर्व दिशा की सीमा पर बंगाल की खाड़ी स्थित है।
- पर्यटन की दृष्टी से ओडिशा
- अक्सर तीव्र चक्रवातों को झेलने वाले ओडिशा राज्य में पुरी, कोणार्क और भुवनेश्वर (पूर्वी भारत का सुनहरा त्रिकोण) जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी हैं।
- पुरी के जगन्नाथ मंदिर की रथयात्रा जहाँ विश्व प्रसिद्ध है वहीं कोणार्क के सूर्य मंदिर को देखने प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं।
- ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर राज्य के साथ-साथ भारत के चुनिंदा सबसे ऐतिहासिक मंदिरों में गिना जाता है। गंगा साम्राज्य के राजा नर्शिमा देव द्वारा निर्मित यह मंदिर 13 शताब्दी के कलिंग वास्तुकाल का सबसे शानदार प्रतीक है। जानकारों के अनुसार यह मंदिर 1200 कलाकारों की मदद से 12 साल में पूरा किया गया था। इस मंदिर में बनाया गया 24 पहियों वाला देव रथ मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जिसे सात घोड़ों के द्वारा खींचता हुआ दर्शाया गया है। यह मंदिर 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका यह मंदिर दीवारों पर की गई नक्काशी, उकेरी गईं मूर्तियां आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।
- ब्रह्मपुर के पास जौगदा में स्थित अशोक का प्रसिद्ध शिलालेख और कटक का बारबाटी किला भारत के पुरातात्विक इतिहास में महत्वपूर्ण हैं।
- ओडिशा के संबलपुर के पास स्थित हीराकुंड या हीराकुद बाँध (सबसे लंबा मिट्टी का बांध) विश्व के विशालतम व सबसे लम्बे बाँधों में से एक है।
- भुवनेश्वर से लगभग 20 किमी की दूरी पर हिरापुर कस्बे में स्थित,चौसठ योगिनी मंदिर, जहां 64 देवियों की प्रतिमाएं मुख्य आकर्षण का केंद्र हैं। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण रानी हिरादेवी ने 9वीं शताब्दी के दौरान कराया था। यह मंदिर ईंटों और बालू का इस्तेमाल कर बनाई गई एक गोलाकार सरंचना है, जिसकी दिवारों पर 56 प्रतिमाएं ब्लैक ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल कर बनाईं गईं हैं।
- ब्रह्मेश्वर मंदिर, ओडिशा खोरदा जिले के भुवनेश्वर शहर मे स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। 9 वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर किसी समय ध्वस्त हो गया था जिसका पुननिर्माण 18 वीं शताब्दी के दौरान सोमवाम्सी राजा उदयोतकेसरी ने राजमाता रानी कोलावती देवी की सहायता से करवाया था। इस मंदिर का निर्माण पत्थर का इस्तेमाल कर पारंपरिक वास्तुकला शैली में करवाया गया था। यह मंदिर पिरामिड आकार में है। जिसके अंदर कई प्रतिमाएं मौजूद हैं।
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