राजस्थान के प्रतीक चिन्ह ( State Symbol of Rajasthan)
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1. राजस्थान राज्य पशु ( Rajasthan State Animal ) : चिंकारा(chinkara) ( वन्य जीव श्रेणी )
- चिंकारे को राज्य पशु का दर्जा – 22 मई , 1981
- चिंकारे का वैज्ञानिक नाम – गजेला – गजेला
- चिंकारा एंटीलोप प्रजाति का जीव है ।
- राज्य में सर्वाधिक चिंकारे जोधपुर में देखे जा सकते है ।
- चिंकारे को छोटा हरिण के उपनाम से भी जाना जाता है ।
- चिंकारों के लिए नाहरगढ़ अभयारण्य ( जयपुर )प्रसिद्ध हैं ।
- “चिकारा” नाम से राजस्थान में एक तत् वाद्य यंत्र भी है।
- चिंकारा श्रीगंगानगर जिले का शुभंकर है।
2. राजस्थान राज्य पशु ( Rajasthan State Animal ) : ऊंट(Camel) (पशुधन श्रेणी)
- 30 जून, 2014 को बीकानेर मे हुई कैबिनेट बैठक में ऊँट को राजकीय पशु घोषित किया गया
- ऊँट को राज्य पशु का दर्जा – 19 सितम्बर 2014
- ऊँट वध रोक अधिनियम – दिसम्बर 2014
- ऊँट का वैज्ञानिक नाम “कैमेलस ड्रोमेडेरियस” है ।
- ऊँट को अंग्रेजी में “केमल” के नाम से जाना जाता है ।
- ऊंट को स्थानीय भाषा में रेगिस्तान का जहाज या मरूस्थल का जहाज ( कर्नल जेम्स टॉड ) के नाम से जाना जाता है ।
- राजस्थान में भारत के 81.37 प्रतिशत ( 2012 ) ऊँट पाये जाते है ।
- ऊंटों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का भारत में एकाधिकार है
- राजस्थान की कुल पशु सम्पदा ऊँट सम्पदा का प्रतिशत 0.56 प्रतिशत है ।
- राज्य में जैसलमेर सर्वाधिक ऊँटों वाला जिला है । प्रतापगढ सबसे कम ऊँटों वाला जिला है।
- ऊँट अनुसंधान केन्द्र जोहड़बीड ( बीकानेर ) में स्थित है । ऊंट प्रजनन का कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा संचालित किया जा रहा है
- कैमल मिल्क डेयरी बीकानेर में स्थित है ।
- सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में अक्टूबर 2000 में ऊँटनी के दूध को मानव जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ बताया । ऊँटनी के दूध में कैल्सियम मुक्त अवस्था में पाए जाने के कारण इसके दूध का दही नहीं जमता है ।
- ऊँटनी का दूध मधुमेह (डायबिटिज) की रामबाण औषधि के साथ-साथ यकृत व प्लीहा रोग में भी उपयोगी है ।
- भारतीय सेना के नौजवान थार मरूस्थल में नाचना ऊँट का उपयोग करते है ।
- जैसलमेर के नाचना का ऊँट सुंदरता की दृष्टि से प्रसिद्ध है ।
- गोमठ – फलौदी-जोधपुर का ऊँट सवारी की दृष्टि से प्रसिद्ध है ।
- बीकानेरी ऊँट सबसे भारी नस्ल का ऊँट है । इसलिए बीकानेरी ऊँट बोझा ढोने की दृष्टि से प्रसिद्ध है । राज्य में लगभग 50% इसी नस्ल के ऊंट पाले जाते हैं ।
- ऊँटों के देवता के रूप में पाबूजी को पूजा जाता हैं । ऊँटों के बीमार होने पर रात्रिकाल में पाबूजी की फड़ का वाचन किया जाता हैं । राजस्थान में ऊँटों को लाने का श्रेय भी पाबूजी को है ।
- ऊँटों के गले का आभूषण गोरबंद कहलाता है
- ऊँटों में पाया जाने वाला रोग सर्रा रोग है । प्रदेश में ऊँटों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण सर्रा रोग हैं । इस रोग पर नियंत्रण के उद्देश्य से वर्ष 2010-11 में ऊँटों में सर्रा रोग नियंत्रण योजना प्रारम्भ की गई ।
- ऊँटों का पालन-पोषण करने वाली जाति राईका अथवा रेबारी है ।
- ऊँटों की चमडी पर की जाने वाली कला उस्ता कला कहलाती है । उस्ता कला को मुनवती या मुनावती कला के नाम से भी जाना जाता है उस्ता कला मूलत: लाहौर की है । उस्ता कला को राजस्थान में बीकानेर के शासक अनूपसिंह के द्वारा लाया गया । अनूपसिंह का काल उस्ता कला का स्वर्णकाल कहलाता है । उस्ता कला के कलाकार उस्ताद कहलाते है । उस्ताद मुख्यत: बीकानेर और उसके आस-पास के क्षेत्रों के रहने वाले है । उस्ता कला का प्रसिद्ध कलाकार हिस्सामुद्दीन उस्ता को माना जाता है, जो कि बीकानेर का मूल निवासी थे उस्ता कला का वर्तमान में प्रसिद्ध कलाकार मोहम्मद हनीफ उस्ता है उस्ता कला के एक अन्य कलाकार इलाही बख्स ने महाराजा गंगासिंह का उस्ता कला में चित्र बनाया, जो कि यू. एन.ओ. के कार्यालय में रखा हुआ है
- महाराजा गगासिंह ने चीन में ऊंटों की एक सेना भेजी जिसे गंगा रिसाला के नाम से जाना जाता हैं ।
- पानी को ठण्डा रखने के लिए ऊँटों की खाल से बने बर्तन को कॉपी के नाम से जाना जाता है ।
- सर्दी से बचने के लिए ऊँटों के बालों से वने वस्त्र को बाखला के नाम से जाना जाता है ।
- ऊँट पर कसी जाने वाली काठी को कूंची या पिलाण के नाम से जाना जाता है ऊंटों की नाक में पहनाई जाने वाली लकड़ी की कील गिरबाण कहलाती है ।
- ऊंट की पीठ पर कुबड़ होता है ।कुबड़ में एकत्रित वसा इसकी ऊर्जा का स्रोत है
- ऊँट व ऊँट पालकों के लिए वर्ष 2008-09 में भारतीय जीवन बीमा निगम तथा जनरल इंश्योरेंस कम्पनी के सहयोग से “ऊँट एवं ऊँट पालक बीमा योजना” लागू की गई
- ऊँट का पहनावा – पीठ पर काठी, गर्दन पर गोरबन्द, टाँगों पर मोडिया, मुख पर मोरखा, पूंछ पर पर्चनी, गद्दी मेलखुरी
- ऊँटों की प्रमुख नस्लें – बीकानेरी, जैसलमेर, मारवाड़ी, अलवरी, सिंधी, कच्छी, केसपाल, गुराह
राजस्थान के प्रतिक चिन्ह | State Symbol of Rajasthan
3. राजस्थान राज्य पक्षी ( Rajasthan State Bird ) : गोडावण (Godavana)
- गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा – 21 मई, 1981
- गोडावण का वैज्ञानिक नाम – क्रायोटिस नाइग्रीसेप्स
- गोडावण को अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड बर्ड कहा जाता है ।
- गोडावण को स्थानीय भाषा में सोहन चिड़िया या शर्मीला पक्षी कहा जाता है ।
- इसे हाड़ौती क्षेत्र(सोरसेन) में “मालमोरड़ी” कहा जाता है ।
- गोडावण के अन्य उपनाम — सारंग, हुकना, तुकदर, बड़ा तिलोर व गुधनमेर है ।
- राजस्थान में गोडावण सर्वाधिक तीन क्षेत्रो में पाया जाता है –
1. सोरसन ( बारां ) 2. सोंकलिया (अजमेर ) 3. मरूद्यान ( जैसलमेर , बाड़मेर )।
- गोडावण के प्रजनन हेतु जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है ।
- गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर , नवम्बर का महिना माना जाता है ।
- गोडावण मूलतः अफ्रीका का पक्षी है ।
- गोडावण की कुल ऊंचाई – लगभग 4 (NCRT book में 1 मीटर )
- इसका ऊपरी भाग नीला दिखाई देता है।
- गोडावण शुतुरमुर्ग की तरह दिखाई देता है ।
- प्रिय भोजन – मूंगफली व तारामीरा
- गोडावण राजस्थान के अलावा गुजरात में भी देखा जा सकता है।
- 2011 में की IUCN (International Union for Conservation of Nature) की रेड डाटा लिस्ट में इसे Critically Endangered (संकटग्रस्त प्रजाति) प्रजाति माना गया हैं गोडावण पक्षी विलुप्ति की कगार पर है
- गोडावण के संरक्षण हेतु राज्य सरकार ने विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 2013 को राष्ट्रीय मरू उद्यान , जैसलमेर में प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड प्रारम्भ किया।
- 1980 में जयपुर में गोडावण पर पहला अंर्तराष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित किया गया ।
- गोडावण जैसलमेर का शुभंकर है ।
State Symbol of Rajasthan
4. राजस्थान राज्य पुष्प ( Rajasthan State Flower ) : रोहिड़ा (Rohida)
- रोहिड़े को राज्य पुष्प का दर्जा – 1983
- रोहिड़े का वैज्ञानिक नाम – टिकोमेला अन्डूलेटा
- रोहिड़े के पुष्प मार्च , अप्रैल में खिलते है । इसके पुष्प का रंग गहरा केसरिया हिरमीच पीला होता है ।
- इसको राजस्थान का सागवान तथा मरूशोभा कहा जाता है ।
- जोधपुर में रोहिड़े के पुष्प को मारवाड़ टीक कहा जाता है ।
- रोहिड़े को जरविल नामक रेगिस्तानी चूहा नुकसान पहुंचा रहा है ।
- रोहिड़ा पश्चिमी क्षेत्र में सर्वाधिक देखने को मिलता है ।
राजस्थान के प्रतिक चिन्ह
5. राजस्थान राज्य वृक्ष ( Rajasthan State Tree ) : खेजड़ी (Khazdi)
- खेजड़ी राज्य वृक्ष का दर्जा – 31 अक्टूबर , 1983
- 5 जून 1988 को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर खेजड़ी वृक्ष पर 60 पैसे का डाक टिकट जारी किया गया ।
- खेजड़ी का वैज्ञानिक नाम :- प्रोसेपिस सिनरेरिया
- खेजड़ी को राजस्थान का कल्प वृक्ष , थार का कल्प वृक्ष , रेगिस्तान का गौरव आदि नामो से जाना जाता है ।
- खेजड़ी को Wonder Tree व भारतीय मरुस्थल का सुनहरा वृक्ष भी कहा जाता है ।
- खेजड़ी के सर्वाधिक वृक्ष शेखावाटी क्षेत्र में देखे जा सकते है । खेजड़ी के सर्वाधिक वृक्ष नागौर जिले में देखे जाते है । यह राज्य में वन क्षेत्र के 2/3 भाग में पाया जाता है
- खेजड़ी के वृक्ष की पूजा विजय दशमी / दशहरे ( आश्विन शुक्ल -१० ) के अवसर पर की जाती है ।
- खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगा जी व झुंझार बाबा के मंदिर बने होते है ।
- खेजड़ी को हरियाणवी व पंजाबी भाषा में जांटी के नाम से जाना जाता है। खेजड़ी को तमिल भाषा में पेयमेय के नाम से जाना जाता है । खेजड़ी को कन्नड़ भाषा में बन्ना-बन्नी के नाम से जाना जाता है । खेजड़ी को सिंधी भाषा में छोकड़ा के नाम से जाना जाता है ।खेजड़ी को बंगाली भाषा में शाईगाछ के नाम से जाना जाता है ।
- खेजड़ी को विश्नोई संप्रदाय में शमी के नाम से जाना जाता है ।
- खेजड़ी को स्थानीय भाषा में सीमलो कहा जाता है । खेजड़ी की हरी फलियां सांगरी ( फल गर्मी में लगते है ) कहलाती है तथा पुष्प मींझर कहलाता है । खेजड़ी कि सूखी फलियां खोखा कहलाती है । खेजड़ी की पत्तियों से बना चारा लूंम/लूंग कहलाता है ।
- वैज्ञानिको ने खेजड़ी के वृक्ष की आयु पांच हजार वर्ष बताई है । राज्य में सर्वाधिक प्राचीन खेजड़ी के दो वृक्ष एक हजार वर्ष पुराने मांगलियावास गांव ( अजमेर ) में है । मांगलियावास गांव में हरियाली अमावस्या (श्रावण ) को वृक्ष मेला लगता है ।
- खेजड़ी के वृक्ष को सेलेस्ट्रेना व ग्लाइकोट्रमा नामक कीड़े नुकसान पंहुचा रहे है ।
- माटो :- बीकानेर के शासकों द्वारा प्रतीक चिन्ह के रूप रूपये में खेजड़ी के वृक्ष को अंकित करवाया ।
- ऑपरेशन खेजड़ा नमक अभियान 1991 में चलाया गया ।
- वन्य जीवो के रक्षा के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान 1604 में जोधपुर के रामसडी गांव में करमा व गौरा के द्वारा दिया गया
- वन्य जीवों की रक्षा के लिए राज्य में दूसरा बलिदान 1700 में नागौर के मेड़ता परगना के पोलावास गांव में वूंचो जी के द्वारा दिया गया
- खेजड़ी के लिए प्रथम बलिदान अमृता देवी बिश्नोई ने 1730 में 363 लोगो के साथ जोधपुर के खेजड़ली ग्राम या गुढा बिश्नोई गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को दिया ।
- भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी को तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है ।
- भाद्रपद शुक्ल दशमी को विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजड़ली गांव में लगता है । बिश्नोई सम्प्रदाय के द्वारा दिया गया यह बलिदान साका या खड़ाना कहलाता है ।
- खेजड़ली बलिदान के समय जोधपुर का राजा अभयसिंह था । अभयसिंह के आदेश पर गिरधर दास के द्वारा 363 लोगों की हत्या की गई ।
- खेजड़ली दिवस प्रतिवर्ष वर्ष 12 सितंबर को मनाया जाता है । प्रथम खेजड़ली दिवस 12 सितम्बर, 1978 को मनाया गया।
- अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार की शुरुआत 1994 में की गई । खेजड़ली आंदोलन चिपको आंदोलन का प्रेरणा स्त्रोत रहा है । वन्य जीवों के संरक्षण के लिए दिये जाने वाला सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार है । यह प्रथम पुरस्कार गंगाराम बिश्नोई ( जोधपुर) को दिया गया । अमृतादेवी मृग वन खेजड़ली गाँव ( जोधपुर) स्थित है
6. राजस्थान राज्य खेल ( Rajasthan State Sports ) : बास्केटबाल(Basketball)
- बास्केटबाल को राज्य खेल का दर्जा :- 1948
- खिलाड़ियों की संख्या :- 5
- बास्केटबाल अकादमी जैसलमेर मे स्थित हैं ।
- महिला बास्केट बाल अकादमी जयपुर मे स्थित है ।
7. राजस्थान राज्य गीत ( Rajasthani state song ) : केसरिया बालम( Kesaria Balam)
- इस गीत को सर्वप्रथम उदयपुर की मांगी बाई के द्वारा गया गया ।
- इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय बीकानेर की अल्लाजिल्ला बाई को है ।
अल्लाजिल्ला बाई को राजस्थान की मरू कोकिला कहा जाता है । - यह गीत माण्ड गायिकी शैली में गाया जाता है ।
- माण्ड गायिकाओं के नाम – स्व हाजन अल्ला-जिल्ला बाई (बीकानेर) , स्व. गवरी देवी (बीकानेर) , मांगी बाई (उदयपुर) , गवरी देवी (पाली)
8. राजस्थान राज्य का शास्त्रीय नृत्य ( Rajasthan State Classical Dance ) : कत्थक (Katthak)
- कत्थक उत्तरी भारत का प्रमुख नृत्य है ।
- दक्षिणी भारत का प्रमुख नृत्य भरतनाट्यम है ।
- कत्थक का भारत में प्रमुख घराना – लखनऊ
- कत्थक का राजस्थान में प्रमुख घराना – जयपुर
- कत्थक के जन्मदाता भानूजी महाराज को माना जाता है
9. राजस्थान राज्य की राजधानी ‘ जयपुर ‘ ( Rajasthan state capital Jaipur )
- जयपुर को राजधानी 30 मार्च 1949 को बनाया गया ।
- जयपुर को राजधानी श्री पी सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश पर बनाया गया ।
- स्थापना – सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा, 18 नवम्बर 1727
- वास्तुकार – विद्याधर भट्टाचार्य
- जयपुर के निर्माण के बारे में बुद्धि विलास नामक ग्रंथ से जानकारी मिलती है ।
- जयपुर का निर्माण जर्मनी के शहर द एल्ट स्टड एर्लग के आधार पर करवाया गया है ।
- जयपुर का निर्माण चौपड़ पैटर्न के आधार पर किया गया है ।
- जयपुर को गुलाबी रंग में रंगवाने का श्रेय रामसिंह द्वितीय को है ।
10. राजस्थान राज्य लोक नृत्य (Rajasthan State Folk Dance) : घूमर (Ghoomar)
- घूमर को राज्य की आत्मा के उपनाम से जाना जाता है
- घूमर के तीन रूप है
- झूमरिया – बालिकाओ द्वारा किया जाने वाला नृत्य
- लूर – गरासिया जनजाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य
- घूमर इसमे सभी स्त्रियां भाग लेती है
राजस्थान के प्रतिक चिन्ह PDF Download (State Symbol of Rajasthan)
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. राजस्थान का राज्य वृक्ष कौन सा है ?
उत्तर- खेजड़ी
2. राजस्थान का राज्य पक्षी कौन सा है ?
उत्तर- गोडावण
3. राजस्थान का राज्य पुष्प कौन सा है ?
उत्तर- रोहिड़ा
4. राजस्थान का राज्य खेल कौन सा है ?
उत्तर- बास्केटबाल
5. राजस्थान का राज्य पशु कौन सा है ?
उत्तर- चिंकारा / ऊंट
6. राजस्थान का राज्य लोक गीत कौन सा है ?
उत्तर- केसरिया बालम( Kesaria Balam)
7. राजस्थान का राज्य लोक नृत्य कौन सा है ?
उत्तर- घुमर
8. राजस्थान का राज्य शास्त्रीय नृत्य कौन सा है ?
उत्तर- कत्थक
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